गुरुवार, 25 मार्च 2010

ये कैसा देश प्रेम है.........



ऐ, मेरे वतन के लोगो.....
ज़रा आँख में भर लो पानी....
जो शहीद हुए हैं उनकी....
ज़रा याद करो क़ुरबानी....
लता मंगेशकर का गाया हुआ ये गीत यूं तो हम सब ने ही सुना होगा .....पर क्या सकी कसौटी पर खरे उतर पाये हम लोग....ज़्यादातर लोगो का जवाब शायद ना में ही होगा....
वैसे आप लोग सोच रहे होंगे के अचानक ये देश भक्ती की भावना कहा से पैदा हो गई मुझमें....तो जनाब बताता चलूं के २३ मार्च को शहीद दिवस निकला है....वो दिन जो शायद भारत के इतीहास के काले दिने में से एक है... वो दिन जब अंग्रेज़ो ने भारत के इतिहास में एक और काला अध्याय जोड़ दिया।।
ये वो दिन था जब भारत के तीन लाडलो ने फांसी को हंसते-हंसते अपने गले में एक फूलो की माला की तरह पहन लिया...तीन जांबाज़ो ने जिन्हे देश को आज़ाद करने का जूनून था...उनकी आंखो में एक ही सपना था...भारत को आज़ाद देश बनाने का और वो ही सपना लिये वो इस दुनिया को छोड़ गये...भारत के इतिहास का वो दिन जब अंग्रेज़ो ने भारत के तीन सिपाहियों को फ़ासी पर चड़ा दिया गया....उन तीन बहादुर सिपाहियों के नाम थे......
शहीद भगत सिंह.....
शहीद राजगुरू.....
शहीद सुखदेव....
वो ही तीन क्रांतिकारी जिन्होने अपनी खुशियां, अपना जीवन, अपनी पूरी ज़ंदगी इस भारत देश के नाम कर दी....सिर्फ और सिर्फ एक उम्मीद के सहारे के इस देश को आज़ाद देख सके, आज़ाद करा सके, लोकिन शायद जीतेजी ये उनके नसीब में ही नहीं था....तभी तो उन्हे अपनी जान को देश के नाम करना पड़ा... पर वो उसमे भी पीछे नही हटे....और मौत को हंसते-हंसते गले लगा लिया.....देश तो आज़ाद हुआ पर वो दिवाने, वो सिपाही, इस देश के वो तीन परवाने नहीं थे...वो तो जा चुके थे अपना काम कर चुके थे...अपनी ज़िंदगी इस देश के नाम पहले ही कुरबान कर चुके थे....आखिर ये उनकी मेहनत और दिवामगी का हा नतीजा था के आखिर हमे एक दिन आज़ादी मिली...फिर क्या था... ये सोने की चुड़ियां उड़ी और इतना ऊंचा उड़ी के सारी ऊचांइयां बौनी साबित होने लगी...यहां तक की ये उन लोगो को भी भूल गई जिन्होने उसे अंग्रेज़ो के पिंजरे से छुड़ाया....आज़ाद कराया.....तभी तो हम आज उन तीन महापुरुषो को भूल गए जिनके बलिदान के बिना इसको आज़ादी नही मिल पाती। भगत सिंह ने कभी लिखा था....
शहीदो की मज़ारो पर हर लगेंगे हर बरस मेंले...
वतन पर मिटने वालो का बाकी यही निशां होगा.....
पर अब लगता है जैसे वो जांबाज़ गलत थे... २३ मार्च को इन तीन क्रांतिकारियों को फासी के तख्ते पर लटका दिया गया पर आज कौन है जो इन्हे याद करता है.....और सबसे बड़ी विडंबना तो ये न्यूज चैनल जिस पर हर खबर दिखाने की होड़ लगी रहती है....हर खबरिया चैनल जो हर खबर को सबसे पहले फलैश करने की धमा चौकड़ी में डूबे रहते है......वो लोग जिनके लिए खबरे ज़िंदगी से कम भी नहीं....वो अखबार जो हर खबर छापते है...लेकिन मसला है भाई..... इस खबर मे पैसा नहीं है....मसाला नहीं है....आज हमारे मुताबिक खबर वो है जिसमे मसाला हो.....वो नही जिसमें भगत सिंह जैसे महापुरुषो की आत्मा छिपी है.....अरे भाई टीआरपी भी तो चाहिये ना....
भगवान का शुक्र है जो वो तीन जांबाज़ अब हमारे बीच नहीं है....वरना सिवाय अफ़सोस और पछतावे के उनके हाथ कुछ नही लगता.....
किसी ने सही कहा है के भगवान जो करता है अच्छे के लिए ही करता है........।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें