शनिवार, 20 मार्च 2010

मेरी सच्चाई

ज़्यादा चुप ही रहे वो, कभी— कभी बोले....
मगर जो बोले तो ऐसे के शायरी बोले,
इतने भी तन्हा थे दिल के कब दर्वाज़े....
दस्तक को तरस रहे हैं अब दरवाज़े,
शहर फूँकने वालो ! यह ख़याल भी रखना....
दोस्तों के घर भी हैं दुश्मनों की बस्ती में,
इस दौरे—सियासत में हर कोई ख़ुदा ठहरा....
रखिए भी तो किस किस की दहलीज़ पे सर रखिए,
तू वो न देख दिखाती है अक़्स जो दुनिया.....
देख वो जो दिखाता है आइना दिल का ।

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