मंगलवार, 23 मार्च 2010

क्या पत्रकार भी एक आम आदमी होता है.............

काश मैं एक पत्रकार बन जाता.......आज से चार साल पहले अपने गृह नगर मुरादाबाद से सोच कर तो यही आया था....घर वालो से लड़ाई लड़ी, घर छोड़ा, मित्रो से दूर हुआ और अपना शहर छोड़ सीर्फ पत्रकारिता करने के लिए....लेकिन ये क्या मै तो आज भी वही हूं जंहा आज से चार साल पहले था.....आते वक्त सोचा था के खूब नाम कमाना हैं पैसा भी कमाना है, घर वालो का नाम रौशन करना है और देश के लिए कुछ करने की इच्छा भी थी किसी कोने में पर यहां तो कुछ भी नही....जन्सत्ता में काम किया, खबरिया चैनल इंडिया न्यूज़ में भी काम किया और भी बहुत सी जगह काम किया तह जाकर समझ आया, के नहीं मैं तो गलत था.....पत्रकारिता तो कहीं खत्म हो गई हैं, कहीं खो गई है....अब खबर दिखाई नहीं जाती बेची जाती है.......खैर ये सब छोड़िए मेरा मौज़ू तो कुछ और ही था....असल में मैं पिछले दिनो घर गया जब वहां पहुंचा तो बहुत अच्छा लगा सबसे मुलाकात करी....जब मित्रो से मिलने गया तो भी बहुत अचछा लगा...मित्रो ने हाल चाल पता किया...मैने बताया,,,,कुच देर बाद मित्र के साथ घूमने भी गया पर वहां मेरे मित्र का कोई पहचान वाला मिल गया.....मेरी पहचान भी हुई उन साहब से....पर जब उन्होने मेरे काम काज के बारे में पाता किया तो मेरा तपाक से बोला......अरे न्यूज़ चैनल में काम करते हैं जनाब... खबरे बनाते है... दिल्ली में रहते हैं....वो साहब भी बड़े खुश हुए और लगे मौका देख कर चौका मारने में .....फौरन बोले के मेरे छोटे भाई को कहीं काम दिला दें अभी कॉलेज खत्म किया है उसने....आपकी तो अच्छी जान पहचान होगी आखिर आप मीडीया में हैं....मैने भी कह दिया जी ज़रूर देखुंगा और फिर वहां से हम दोनो मित्र चल दिये......पर उन साहब की ये बात दिल में बैठ गई के आपकी तो अच्छी बात होगी कहीं मेरे भाई को भी काम दिला दें....मैं इस बारे में सोचता रहा और दूसरे दिन वापस दिल्ली आ गया......आते ही एक बड़ी खबर ने मुझे हिला दिया जिस चैनल में पहवे काम करता था वहां से एक झटके में पैंतालीस लोगो की एक साथ छुट्टी हो गई थी....उन लोगो में मेरे कई मित्र भी थे.....उनके लिए मुझे भी बुरा लगा....और उस समय उन साहब की बात मुझे याद आ गई...के मेरे भाई को काम दिला देना....यबां पर तो अपनी नौकरी पक्की नही हैं....दूलरे को क्या दिलाउ....क्. पत्रकारो का घर बार नहीं होता, क्या हम लोग खाना नहीं खाते या कपड़े नहीं पहनते....सब कुछ तो करते है पर फिर भी अपनी नौकरी पक्की नही....बिना किसी नोटिसि के बिना किसी आधार के कह दिया गया कल से आप नही आना...आपका काम खत्म.. ये किस तरह की नौकरी है जिसकी कोई गारंटी ही नही....किसी और के लिए क्या कर सकते है हम.......हम से लाचार शायद ही कोई और होगा.......

3 टिप्‍पणियां:

  1. सभी नौकरियों का यही हाल है भाई..कौन सी फील्ड सेफ है सिर्फ बाबा बनने और नेता बनने को छोड़ एक गुंडागिरी की लाईन बचती है. :)

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  2. हिन्दी में विशिष्ट लेखन का आपका योगदान सराहनीय है. आपको साधुवाद!!

    लेखन के साथ साथ प्रतिभा प्रोत्साहन हेतु टिप्पणी करना आपका कर्तव्य है एवं भाषा के प्रचार प्रसार हेतु अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें. यह एक निवेदन मात्र है.

    अनेक शुभकामनाएँ.

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  3. mai aapki pida ko samajh paa raha hun..rozi roti us upar wale ke haanth me hay..job chahe koi bhi ho khatra bana rahta hay..bas apne kaam me ek nayapan hamesha rakhna hoga..tab hin aap tik sakte hay. nhi to ek se ek tetented log baazar me ghum rahen hay.

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