शनिवार, 20 मार्च 2010

मुहब्बत

तुम मेरी कोई नही
कोई नही हो, लोकिन......
क्यों गुमा दिल को यह होता है की तुम मेरी हो ,
एक मासूम सा जज़्बे जिसे उल्फ़त कहिये
गोशा दिल में ये पिरोता है की तुम मेरी हो ,
आरजू ख़्वाब सही , फिर भी एक उम्मीद तो है ,
तुम मुझे प्यार ना दो पर प्यार से आवाज़ तो दो ,
मैं के ख़ामोश मुहब्बत का पुजारी ,
अब तक एक उम्मीद एक सहारे पर जिया करता हूँ ,
गुले उम्मीद तो खिल सकता है अगर तुम चाहो ,
मै बार्हाल तुम्हे प्यार किया करता हूं..........!

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