मंगलवार, 16 मार्च 2010

पैसो की माला वाली माया की जय ........


मायावती जी आखिर तुम कब जाओगी.... अब तो बहुत दिन हो गए आप को झेलते हुए....आप कब क्या,कैसे करती है आज तक शायद ही किसी की समझ में आया होगा....ओह,,,,,, मांफ करना.... मैं तो भूल गया आपके चेले चपाटो की कमी तो वैसे है नहीं....यूं तो छोटी सी बात हैं तो छोटे शब्दो में कह देता हूं.....की,,,,,,,, माया की माया माया हीं जानें... ... वैसे आपको तो बस प्रम पुज्य कांशीराम जी ने ही समझा था.......असल में..... मायावती का सही आकलन करा था कांशिराम ने.......तभी तो आपने उनके लिए इतना कुछ करा...........उनके नाम से शहर बना दिये...... सड़को के नाम भी उनके नाम पर रख दिये......और तो और उनकी मूर्तियां भी लगवाई........वैसे माया जी एक छोटा सा सवाल था कांशीराम जी की मूर्तियां लगवाई तो लगवाई पर अपनी क्यूं लगवाई.......कही ऐसा तो नहीं के कांशिराम जी अपनी वसीयत में लिख गए थे,,,,,,,, हां वैसे ऐसा हि होगा वरना आपतो बहुत ही समझदार हैं.......... लगता हैं के जैसे कह गए हो की गली, नुक्कड़, चौबारों पर मायावती की प्रतिमाएँ लगें। माया जी वैसे तो आप सही कहती हैं कि कौन सा क़ानून जीवित लोगों की मूर्तियाँ लगाने को मना करता है.........बात तो सच है.... पर मैडम माला तो मरने वाले को पहनाई जाती है ना........पर मांफ करना आप तो धड़ल्ले से पहनती है..........और वो भी नोटो की .....आखिरकार आप कि तो बात ही अलग है....आप तो हर काम डंके की चोट पर करती हैं। चलिए खैर छोड़िये........आगे चलते है,,,,,,, क्योकि आपने वो तो सुना ही होगा........."के बात निकलेगी तो दूर तलक जायेगी....." माया जी आपने अभी इतना बड़ा आयोजन कराया....क्या हुआ याद नहीं आया....हां वैसे याद भी कहां रहता होंगा आपको कराती रहती है ना आप.....आपका दिल दरियां और पैसा ठहरा जनता का.....मतलब आप ही का आखिर आप को भी तो जनता ने ही चुना हैं....।वैसे आपकी वो फूलो वाली माला मुझे बहुत पसंद आई.....लोग फालतू हो हल्ला मचा रहे हैं.........आप नाराज़ ना हो कहावत है ना बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद.........मायावती की बुराइयाँ ढूँढने वालो ज़रा उनकी अच्छाइयों पर भी तो एक नज़र डालो.....हज़ार रुपये के नोटों की माला पहन कर माया जी ने कितना अच्छा संदेश दिया है...... कि बाग़ से फूलों को मत तोड़ो........फूल तो खिले हुए अच्छो लगते है ना तो उन्हें खिला रहने दो माला में मत पिरोओ...। माना पहन्नी है तो नोटों ती माला से काम चला लो..... देखा पर्यावरण की कितनी चिंता है माया जी को....... किसी और को नहीं.........। तो क्या हुआ के प्रतापगढ़ में लोगो को मुआवज़ा नही मिला गलती भी तो उन्ही की थी......कहते है ना लालच बुरी बला है....... । खैर कॉंग्रेस ने महारैली को सर्कस कहा है अब आप ही लोग बताइए के ऐसा सर्कस कहीं देखा है जहाँ बिना टिकट लिए सर्कस देखने को मिले.......तो जनता अगर बिना पैसा ख़र्च किए यह सर्कस देख कर अपन मनोरंजन कर रही है तो विपक्ष के पेट में क्यों दर्द हो रहा है......सब राजनेतिक रोटियां ही सेक रहे हैं आपको छोड़ कर....मायावती जी, बहन जी, आप यूँही फूलें फलें....नहीं शायद मुहावरा बदलना पड़ेगा....आप यूँही नोटों के हार पहनती रहें...हम क्यों दुखी हैं...यह एक हज़ार रुपये हमारी जेब में थोड़े ही आने वाले थे...हमने तो एक हज़ार का नोट छू कर भी नहीं देखा है.
तो भैया बोला नोटो की माला वाली माया की............................ ये तो मैं आप लोगो पर ही छोड़ता हूं.......

6 टिप्‍पणियां:

  1. अस्सलाम अलैकुम,
    आपने बहुत ही ख़ूबसूरती से अपनी बात रखने की कोशिश की है.
    अल्लाह का करम है कि अब ब्लॉग की दुनिया में कौम के लोगों की भागीदारी बढ़ रही है.ख़ुशी हुई.कभी मौक़ा मिले तो दीन और दुनिया की तरफ भी आयें.
    वस्सलाम

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  2. بھائی جان
    میں کوئی حمایتی نہیں مالا وتی معاف کیجئے مایاوتی کا ...لیکن ہممم کے سارے ننگوں کو دیکھ کر حسبحال ایک شیر عرض کرنے کی طبیعت ہو ای
    انکی ہر رات گزرتی ہے دیوالی کی طرح
    ہمنے ایک بلب چرایا تو برا ماں گئے؟
    کبھی ہمارے گلشن میں بھی تشریف لیِں

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  3. talib sahab se sahmat ...aap likhe padhe aur apni tippani den.aapka swagat hay

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  4. मया महा ठगिनी हम जानि,
    तिर्गुण फ़ाँस लिये कर डोले,
    बोले मधुर बाणी ।

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