देश भर में अन्ना हजारे की मुहीम का लोग समर्थन कर रहे है. लाखो की तादाद में लोग अन्ना को सपोर्ट करने के लिए रामलीला मैदान पहुच रहे है. इतना ही नहीं हर जगह आज कल देश भक्ति के गीत या देश भक्ति के नारे लगते दिख जाते है. चाहे दिल्ली की मेट्रो हो या फिर गलियाँ और चोराहे. पूरा माहौल देश भक्ति से सराबोर हो चूका है. लेकिन क्या ये ज़रूरी नहीं है के अन्ना को समर्थन देने से पहले हमे अपने अन्दर मौजूद भ्रष्टाचार को ख़त्म करना चाहिए. वो भ्रष्टाचार जो हमारे अंदर मौजूद है. जिसके ज़रिये हम रोजाना अपने हजारो काम निकालते है. क्या ये ज़रूरी नहीं....अन्ना सही है . उनकी मुहीम बेशक सही हो सकती है. लेकिन क्या हमारा तरीका सही है. जब हम खुद ही भ्रष्टाचार में पूरी तरह से लिप्त है तो क्यों अन्ना को सपोर्ट कर रहे है. या यु कहे के हमारा क्या हक है अन्ना को सपोर्ट करने का. पहले खुद को सही करना ज़रूरी नहीं है क्या. अपने दो रूपए के फायदे का लिए एक रूपए की रिश्वत दे देते है. दिन में दस बार लाल बत्ती क्रोस करते है और उस से बचने के लिए पचास या सौ रूपए की रिश्वत देना हमारे लिए बड़ी बात नहीं है. लेकिन हम अन्ना को सपोर्ट करने ज़रूर पहुचते है.अंग्रेजी की एक कहावत है चैरिटी बिगिन्स एट होम. सबने सुनी भी होगी लेकिन क्या इस पर अमल करना ज़रूरी नहीं है. अन्ना की आंधी तो चल पड़ी है. लेकिन हमारे अंदर वो आंधी कब चलेगी.
रविवार, 21 अगस्त 2011
सोमवार, 18 अप्रैल 2011
पिंजरे में क्यों फुदक रही मुनिया.....
मुंशी कि क्लर्क या ज़मींदार
लाज़िम है कलेक्टरी का दीदार
हंगामा ये वोट का फ़क़त है
मतलूब हरेक से दस्तख़त है
हर सिम्त मची हुई है हलचल
हर दर पे शोर है कि चल-चल
टमटम हों कि गाड़ियां कि मोटर
जिस पर देको, लदे हैं वोटर
शाही वो है या पयंबरी है
आखिर क्या शै ये मेंबरी है
नेटिव है नमूद ही का मुहताज
कौंसिल तो उनकी हि जिनका है राज
कहते जाते हैं, या इलाही
सोशल हालत की है तबाही
हम लोग जो इसमें फंस रहे हैं
अगियार भी दिल में हंस रहे हैं
दरअसल न दीन है न दुनिया
पिंजरे में फुदक रही है मुनिया
स्कीम का झूलना वो झूलें
लेकिन ये क्यों अपनी राह भूलें
क़ौम के दिल में खोट है पैदा
अच्छे अच्छे हैं वोट के शैदा
क्यो नहीं पड़ता अक्ल का साया
इसको समझें फ़र्जे-किफ़ाया
भाई-भाई में हाथापाई
सेल्फ़ गवर्नमेंट आगे आई
पंव का होश अब फ़िक्र न सर की
वोट की धुन में बन गए फिरकी
लाज़िम है कलेक्टरी का दीदार
हंगामा ये वोट का फ़क़त है
मतलूब हरेक से दस्तख़त है
हर सिम्त मची हुई है हलचल
हर दर पे शोर है कि चल-चल
टमटम हों कि गाड़ियां कि मोटर
जिस पर देको, लदे हैं वोटर
शाही वो है या पयंबरी है
आखिर क्या शै ये मेंबरी है
नेटिव है नमूद ही का मुहताज
कौंसिल तो उनकी हि जिनका है राज
कहते जाते हैं, या इलाही
सोशल हालत की है तबाही
हम लोग जो इसमें फंस रहे हैं
अगियार भी दिल में हंस रहे हैं
दरअसल न दीन है न दुनिया
पिंजरे में फुदक रही है मुनिया
स्कीम का झूलना वो झूलें
लेकिन ये क्यों अपनी राह भूलें
क़ौम के दिल में खोट है पैदा
अच्छे अच्छे हैं वोट के शैदा
क्यो नहीं पड़ता अक्ल का साया
इसको समझें फ़र्जे-किफ़ाया
भाई-भाई में हाथापाई
सेल्फ़ गवर्नमेंट आगे आई
पंव का होश अब फ़िक्र न सर की
वोट की धुन में बन गए फिरकी
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